देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।

 भाग्य रूठ जाए तो गुरु रक्षा करता है, गुरु रूठ जाए तो कोई नहीं होता। गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥

मूर्ख की अपने घर पूजा होती है, मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है, राजा की अपने देश में पूजा होती है विद्वान् की सब जगह पूजा होती है|

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।

तेरा मेरा करने वाले लोगों की सोच उन्हें छोटा बना देती हैं, जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका परिवार होता हैं।

द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् !
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् !!

दो प्रकार के लोगो को गले में पत्थर बांधकर समुद्र में फेंक देना चाहिए| पहले वो जो अमीर होते है पर दान नहीं करते और दूसरे वो जो गरीब हैं लेकिन कठिन परिश्रम नहीं करते.

सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।

विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि वो फल और छाया दोनो देता है| यदि दुर्भाग्य से फल नहीं हैं तो छाया को भला कौन रोक सकता है।

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः॥

जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहाँ नारी को नहीं पूजा जाता, वहां सब व्यर्थ है|

चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः ।।
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ।।

चन्दन को संसार में सबसे शीतल माना गया हैं लेकिन चंद्रमा उससे भी ज्यादा शीतलता देता हैं| लेकिन इन सबसे श्रेष्ठ है अच्छे मित्रों का साथ जो सबसे अधिक शीतलता एवम शांति देता हैं।

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!

किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा(थकावट), आलस्य और काम को टालने की आदत|

प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता।।

प्रिय वचन बोलने से सभी जीव संतुष्ट हो जाते हैं, इसलिए सदैव प्रिय वाक्य ही बोलने चाहिएं। प्रिय वचन बोलने में कंजूसी कैसी।

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परम् ब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम.

--> -->